Thursday, 7 September 2017

“लौटकर तो सिर्फ यादें आती हैं, कभी वो वक़्त नहीं”


लौटकर तो सिर्फ यादें आती हैं, कभी वो वक़्त नहीं
उसकी कही बातें याद आती हैं, अब वो शख़्स नहीं।
सिर्फ पढ़ने से ही जिसे, जग उठे वो एहसास फिर से
ज़िंदगी सब कुछ लिख देती हैं, मगर वो लफ़्ज़ नहीं।
कह गये वो शायर सयाने, इश्क़ के जो थे दीवाने 
मिल जाये जो बड़ी आसानी से, असल वो इश्क़ नहीं।
शिद्दत और मेहनत, शर्त यही के दोनों साथ हो
फिर पूरी न की जा सके जो, ऐसी तो कोई शर्त नहीं।
साये की किस्मत है, सुबह से शाम चलना और ढ़लना
धूप का तिलिस्म है ये तो, साये का अपना कोई अक्स नहीं।
ज़ईफ़ जिस्म का नहीं, जवां रूह का हुस्न है मोहब्बत
देखकर जिसे खुद नैन कहे, कभी देखा ऐसा नक्श नहीं।
वक़्त की बेवक़्त ख़ामोशी का, बयान है यह तो इरफ़ान
एक वक़्त के बाद सब लौट आते हैं, मगर वो वक़्त नहीं।।        
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