Friday, 8 September 2017

“तुझे भुलाना ही नहीं चाहता हूं मैं”...

तुझे अब तक नहीं भुला पाया मैं
तुझे भुलाना ही नहीं चाहता हूं मैं।

हररोज मुझको तेरी याद आती है
तुझे रोज याद करना चाहता हूं मैं।

बात चाहे कोई भी हो कैसी भी हो

“मैं जब लिखता हूँ, कोई और होता हूँ”...

Posted on Sept



इस दुनिया से दूर, कहीं और होता हूँ
मैं जब लिखता हूँ, कोई और होता हूँ।
मुझ को भी पता नहीं, कहाँ तक है हद मेरी
जो नामुमकिन लगे है, वही तो है ज़िद मेरी।
अंदर के समंदर में मैंने, कई तूफ़ान छुपाए हैं
क़ुबूल नहीं हो कभी जो, माँगी ऐसी दुआएँ हैं।
 लफ़्ज़ों के काँधे पर, सिर रखकर रोता हूँ
 मैं जब लिखता हूँ, कोई और होता हूँ।
काग़ज़ और क़लम, हैं दोनों मेरे हमदम
ज़िंदगी के तन्हा सफ़र में, साथ चले हरक़दम।

अपने ही अक्स में, हज़ार शख़्स नज़र आते हैं
तलाश में जिनकी, जज़्बात लफ़्ज़ बन जाते हैं

दर्द की बारिश में, रूह को भिगोता हूँ
मैं जब लिखता हूँ, कोई और होता हूँ।

इस दुनिया से दूर, कहीं और होता हू
मैं जब लिखता हूँ, कोई और होता हूँ।

Thursday, 7 September 2017

“लौटकर तो सिर्फ यादें आती हैं, कभी वो वक़्त नहीं”


लौटकर तो सिर्फ यादें आती हैं, कभी वो वक़्त नहीं
उसकी कही बातें याद आती हैं, अब वो शख़्स नहीं।
सिर्फ पढ़ने से ही जिसे, जग उठे वो एहसास फिर से
ज़िंदगी सब कुछ लिख देती हैं, मगर वो लफ़्ज़ नहीं।
कह गये वो शायर सयाने, इश्क़ के जो थे दीवाने 
मिल जाये जो बड़ी आसानी से, असल वो इश्क़ नहीं।
शिद्दत और मेहनत, शर्त यही के दोनों साथ हो
फिर पूरी न की जा सके जो, ऐसी तो कोई शर्त नहीं।
साये की किस्मत है, सुबह से शाम चलना और ढ़लना
धूप का तिलिस्म है ये तो, साये का अपना कोई अक्स नहीं।
ज़ईफ़ जिस्म का नहीं, जवां रूह का हुस्न है मोहब्बत
देखकर जिसे खुद नैन कहे, कभी देखा ऐसा नक्श नहीं।
वक़्त की बेवक़्त ख़ामोशी का, बयान है यह तो इरफ़ान
एक वक़्त के बाद सब लौट आते हैं, मगर वो वक़्त नहीं।।        
                                                                                 https://rishabh-kumar7.blogspot.in/

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